motiabind

Cataract

मोतियाबिंद
आंखों की दोनों पलकों के अन्दर की लाल श्लैष्मिक-झिल्ली को चक्षु-कला (कनजेक्टीव) कहते हैं। इन पलकों के बाद आंखों में सफेदी दिखाई देती है जिसे कनीनिका (कॉर्निया) कहते हैं। इसके आगे आंखों के पर्दे में एक छेद दिखाई देता है जिसे आंखों का तारा (पूल) कहते हैं। इसके बाद आंखों में एक लैंस होता है जिसमें से बाहर की वस्तुओं की प्रतिबिम्ब गुजरकर आंख के अन्दर चित्र-पट (रेटिना) पर पड़ती है और जिसके फलस्वरूप हम देखते हैं। आंख का वह लैंस जब तक पारदर्शक रहता है तब तक हमें सब वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं लेकिन आयु के बढ़ने के साथ ही यह पारदर्शक लैंस धीरे-धीरे अपारदर्शक होने लगता है। इस लैंस के अपारदर्शक हो जाने से धुंधली दिखाई देती है। जब यह बिल्कुल ही अपारदर्शक हो जाते हैं तो कुछ दिखाई नहीं देता है। इसी को कैटेरैक्ट या मोतियाबिन्द कहते हैं। होम्योपैथिक औषधि का प्रयोग इस लैंस को अपारदर्शक होने और पकने से बचाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

मोतियाबिन्द रोग के कारण

शरीर में अधिक कमजोरी या शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट होने के कारण मोतियाबिन्द का रोग होता है। यह केवल आंखों का रोग नहीं है क्योंकि शरीर का स्वास्थ्य बना रहने पर यह रोग नहीं हो सकता है। मोतियाबिन्द और भी अनेकों कारणों से होता है जैसे गठिया, वातरोग, सिफिलिस आदि और इनमें सुधार करके मोतियाबिन्द रोग से बचा जा सकता है।
मोतियाबिन्द रोग होने के तीन कारण हैं :-
किसी गंभीर बीमारी के कारण
भोजन में अधिक नमक का उपयोग करना: भोजन में अधिक नमक का उपयोग करने से आंखों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव होता है जिसके कारण लैंस सूख जाते हैं, कठोर हो जाते हैं, लैंस का पानी तथा उसकी तराई खत्म हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप मोतियाबिन्द रोग हो जाता है।
अधिक मीठे पदार्थों का सेवन करना : जिस व्यक्ति के शरीर में शुगर की मात्रा अधिक होती है उसकी आंखों का लैंस जल्दी ही अपारदर्शक हो जाते हैं।
धूम्रपान व शराब का सेवन
खान पान में पोषण की कमी के कारण
कठोर जल पीना : कठोर जल में अधिक चूने की मात्रा होती है और जो लोग पहाड़ों पर रहते हैं, झरनों के चूना मिले जल को पीते हैं। उन्हें भी मोतियाबिन्द की शिकायत हो जाती है.

मोतियाबिंद के लक्षण

साफ साफ न दिखना
आँखों में चुभन
रंग में परिवर्तन नजर आना
चश्मे का नंबर बार बार बदलना

मोतियाबिंद के लिए होम्योपैथिक उपचार

Rota G 30 की २ बुँदे सवेरे, २ बुँदे शाम को (१५-२० दिन तक लें )
Cineraria Martima 30 की २-२ बुँदे दिन में ३ बार
Adel 17 की 20 बुँदे, आधे कप पानी में मिलते हुए, दिन में ३ बार लें
Cineraria Martima की २-२ बुँदे दिन में ३ बार

इन दवाओं के सेवन से आपको मोतियाबिंद में बेहद लाभ मिलेगा।

analfiser

Anal Fissure

गुदा या गुदा नलिका में किसी प्रकार की दरार व कट जाने को भगन्दर कहा जाता हैं. यह रोग कब्ज के कारण से अधितर होता है, जब रोगी मलत्याग करने बैठता है और कांखता है या जोर लगाकर मलत्याग करता है तो उसके मलद्वार की मांस की पेशी या उसके चारों ओर की श्लैष्मिक झिल्ली फट जाती है। इस रोग के कारण से मलत्याग करते समय या मलत्याग करने के बाद जलन महसूस होती है, मलत्याग करते समय खून की लकीर सी पड़ी दिखाई पड़ती है। इस प्रकार से गुदा फटने के समय में रोगी को बहुत अधिक परेशानी होती है, यहा तक की रोगी कभी-कभी बेहोश भी हो जाता है। रोगी की यह अवस्था तीन-चार घंटे तक चलती रहती है।

फिशर या भगन्दर के लक्षण

मलत्याग के दौरान दर्द होना जलन होना
मलत्याग में गहरा लाल रंग दिखना
त्वचा में गाँठ बनना
गुदा के आस पास खुजली होना

फिशर या भगन्दर के कारण

फिशर का मुख्य कारण हैं मल का सख्त होना
ये रोग उम्र के साथ भी हो सकता हैं
लगातार दस्त होना
पेट साफ ना रहना
अधिक मसालेदार खाने का सेवन
कब्ज होना
गर्भवस्ता व प्रसव के दौरान आदि फिशर के कुछ मुख्य कारण हैं

फिशर के लिए कुछ होम्योपैथिक दवाएं
आधे गिलास पानी में : Collinsonia Q की ५ बुँदे, Aesculus Hippocastinum की ५-६ बुँदे, Hamamelis Virginica q की ५-६ बुँदे, Ratanhia q की ५-६ बुँदे मिला कर लें.
इन दवाओं के सेवन से आपको फिशर में आराम मिलेगा।

conjunctivities

Conjunctivitis

कंजंक्टिवाइटिस आंखों से संबंधित एक बीमारी होती है। जिसे हम आँख आना कहते है यह आंखों से संबंधित एलर्जी होती है जिसके कारण आंखें लाल या गुलाबी रंग की हो जाती है और उनमें सूजन आ जाना, दर्द होना और पानी गिरने की समस्या पैदा हो जाती है। इसके साथ ही आँखों से पानी आना और सुबह के समय आँख न खोल पाना इसका एक मुख्य लक्षण हैं, कंजंक्टिवाइटिस को लोग अक्सर संक्रामक बीमारी मान लेते हैं लेकिन यह संक्रामक नहीं होती है। यह एक साथ दोनों आंखों को प्रभावित करती है। ये किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभवित कर सकता हैं.
कंजंक्टिवाइटिस के कारण
केमिकल या डिटरजेंट के संपर्क में आने से भी कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है
धूल- मिट्टी के आँख में चले जाने के कारण
पेड़- पौधों से एलर्जी के कारण
जानवर के डंक लगने के कारण
आँखों में इन्फेक्शन के कारण
कंजंक्टिवाइटिस के लक्षण
आँखों का लाल या गुलाबी होना
आँखों में जलन, खुजली, चिपचिपा श्लेष्म निर्वहन करती है जो की बैक्टीरिया के कारण हो सकती हैं।
जबड़े के नीचे या कान के सामने एक सूजन लिम्फ नोड, और एक या दोनों आंखों से श्लेष्म का एक हल्का निर्वहन अक्सर वायरल के कारण आँख आने के लक्षण होते हैं।
वायरल के कारण आंख आने वाले लोगों में आमतौर पर ऊपरी श्वसन संक्रमण या ठंड के लक्षण होते हैं।
आँसू के साथ एलर्जी आँख आने के लक्षण को इंगित कर सकते हैं।
आँख आने के लक्षण में दृष्टि में थोड़ा धुंधलापन आना शामिल है।

कंजंक्टिवाइटिस का होम्योपैथिक उपचार
Argentum Nitricum 200ch की २ बुँदे दिन में २ बार लें
Euphrasia Officinals 30ch की २-५ बुँदे दिन में ३ बार लें
Belladonna 6 की २-५ बुँदे दिन में ३ बार लें
Euphrasia Eyedrop की २-३ बुँदे दिन में ५-६ बार आँखों में डालें
इन दवाओं का उपयोग करने के साथ साथ धूल मिटटी से अपनी आँखों को बचाये.

haija

Cholera’s Homeopathic Treatment in Hindi

Cholera’s Homeopathic Treatment in Hindi : Cholera’s Homeopathic Treatment detailed cure in Hindi available here. होम्योपैथी द्वारा हैजा का उपचार कैसे करें – जानें होम्योपैथी द्वारा हैजा का उपचार कैसे किया जाता है।

Cholera’s Homeopathic Treatment (Hindi)

हैजा, आंतों में इंफेक्शन होने वाली गंभीर बिमारी है। यह विब्रिओ कॉलेरी नामक बैक्टीरिया से फैलता है। आमतौर पर इस बिमारी की शुरुआत उल्टी या दस्त से होती है, लेकिन सही समय पर अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो जानलेवा भी हो सकता है।

अक्सर लोग शुरुआत में हैजा के लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं जिसकी वजह यह समस्या गंभीर हो जाती है। हैजा के शुरुआती अवस्था में उल्टी व दस्त की समस्या होती है। अगर आपको एक-दो बार से ज्यादा ऐसी समस्या हो तो तुरंत डॉक्टर से संपंर्क करना चाहिए। इस बीमारी से बचने के लिए इसके लक्षणों, कारण और उपचार के बारें में जानें।

संक्रमित आहार या पानी पीने से हैजा के बैक्टेरिया शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सीधे नहीं फैलती है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बीमार होने का कोई खतरा नहीं होता। हैजा का इंफेक्शन होने पर 3 से 6 घंटे में रोगी को बार-बार उल्टियां व दस्त लगने लगते हैं। कोई इलाज ना लेने पर धीरे-धीरे यह समस्या घातक रूप ले लेती है और रोगी का ब्लड प्रेशर कम होन लगता है।

लक्षण

  • हैजे के बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं और जब पर्याप्त संख्या में हो जाते हैं तो वहां विष पैदा करते हैं, यह विष रक्त द्वारा शरीर के अन्य भागों में जाता है और रोग बढ़ता है।
  • इस रोग में उलटियां व दस्त होते हैं।
  • जी मिचलाता है व उलटी होने जैसा प्रतीत होता है।
  • उलटी में पानी बहुत अधिक होता है, यह उलटी सफेद रंग की होती है। कुछ भी खाया नहीं कि उलटी में निकल जाता है।
  • उलटी के साथ ही पतले दस्त लग जाते हैं और ये होते ही रहते हैं, शरीर का सारा पानी इन दस्तों में निकल जाता है।
  • रोगी निढाल, थका-थका सा कमजोर व शक्तिहीन हो जाता है।
  • इस रोग में प्यास ज्यादा लगती है, पल्स मंद पड़ जाती है, यूरिन कम आता है व बेहोशी तारी होने लगती है।
  • रोगी के हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं।
  • सांस टूटने लगती है.यूरीन में समस्या होती है और पीले रंग का होता है।
  • रोगी की नाडी तेज चलने लगती है और कमजोर रहती है।
  • हैजा में ज्यादा बुखार नहीं होता, जैसा कि दूसरे इन्फेक्शन में होता है ।हैजा में रोगी की हृदय गति बढ़ जाती है।

जानते है हैजा के लिए होम्योपैथिक उपचार

Veratrum Album 30ch की २ बुँदे दिन में ३ बार लें , २ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में, २ बुँदे शाम को
Cholerasol १-२ बुँदे, आधे कप पानी में मिला कर यदि ५ साल से छोटा बच्चा हैं तो , और ५ साल से बड़ो को ५ बुँदे आधे कप पानी में मिला कर दें
Bio-combination 9 की ४ गोली दिन में ३ बार लें, ४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, ४ गोली शाम को
इन दवाओं के सेवन से हैजा की समस्या पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगी।

 

जानें चर्म रोग का उपचार होम्योपैथी द्वारा।

skindiesease

Homeopathic treatment of Skin Diseases in Hindi

Homeopathic treatment of Skin Diseases in Hindi : Homeopathic treatment of Skin Diseases explained here in Hindi language.

Homeopathic treatment of Skin Diseases

चर्म रोग का उपचार होम्योपैथी द्वारा कैसे करे – जानें चर्म रोग का उपचार होम्योपैथी द्वारा।

हमारे शरीर की त्वचा मुख्य रूप से मल-निष्कासक अंगों के अन्तर्गत आती हैं। त्वचा के माध्यम से प्रतिदिन पसीने के रूप में हमारे शरीर की अधिकांश गंदगी बाहर निकलती रहती है। जब तक हमारी त्वचा स्वस्थ रहती है तब तक शरीर के अन्दर किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं रहती हैं। लेकिन जब किसी कारण से यह अस्वस्थ हो जाती है तब इसके छिद्र बंद हो जाते हैं या शरीर में गंदगी का भार इतना अधिक बढ़ जाता है कि वह इस अंग द्वारा बाहर नहीं निकल पाती तो प्रकृति शरीर को मल-भार से मुक्त करने के लिए बहुत से रोग उत्पन्न कर देती है। जिससे यह गंदगी शरीर के बाहर निकलने लगती है। ये रोग इस प्रकार हैं- खाज-खुजली, दाद, फोड़े-फुन्सियां, उकवात, पामा, छाजन, कुष्ठ, चेचक तथा कण्ठमाला आदि। ये सभी चर्म रोग होते हैं।

चर्म रोग के लक्षण-
इस रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा पर सूजन हो जाती है तथा उसके फोड़े-फुंसियां निकलने लगता है। रोगी व्यक्ति को खुजली तथा दाद हो जाता है और उसके शरीर पर छोटे-छोटे लाल या पीले दाने निकल आते हैं।
त्वचा खुरदुरी हो जाती है और त्वचा में दरार पड़ जाती है

चर्म रोग होने का कारण:-
चर्म रोग होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना होता है।
शरीर के अन्दर खराबी और गंदगी के कारण
चर्म रोग भूख से अधिक भोजन करने, संतुलित भोजन न करने, उचित तथा नियमित व्यायाम न करने, आराम न करने, अच्छी तरह से नींद न लेने के कारण होता है।
चाय-कॉफी तथा नशीली वस्तुओं का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
कब्ज, सिर में दर्द, पेचिश आदि अन्य रोगों के कारण भी चर्म रोग हो सकते हैं।
अधिक गर्म तथा ठंडे मौसम के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
पाचन क्रिया तथा यकृत में खराबी आ जाने के कारण चर्म रोग हो जाते हैं।
पेट में कीड़ें, शरीर की अच्छी तरह से सफाई न करने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
गीले वस्त्र तथा अधिक गर्म वस्त्र पहनने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
मानसिक तनाव चिंता के कारण भी चर्म रोग हो सकते हैं।
रोगी व्यक्ति के वस्त्रों को पहनने तथा उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों का उपयोग करने से भी चर्म रोग हो जाते हैं।

जानते है चर्म रोग के लिए होम्योपैथिक उपचार
Psorinum 200 की ५ बुँदे, १०-१० मिनट के अंतर से दिन में ३ बार लें, इस दवा को आपको हफ्ते में एक बार ही लेना हैं
Bio-Combination 20 की ४ गोली दिन में ३ बार (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, ४ गोली शाम को)
Adel 20, की 15-20 बुँदे, दिन में ३ बार (15-20 बुँदे सवेरे, 15-20 बुँदे दिन में, 15-20 बुँदे शाम को) आधे कप पानी में मिलते हुए लें.
इसके साथ ही किसी अन्य व्यक्ति का उपयोग किया सामान जैसे तौलिया उपयोग में न लाये।

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Chechak

Smallpox

चेचक जब चेचक का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो इस रोग को ठीक होने में 10-15 दिन लग जाते हैं। लेकिन इस रोग में चेहरे पर जो दाग पड़ जाते हैं उसे ठीक होने में लगभग 5-6 महीने का समय लग जाता है। यह रोग अधिकतर बसन्त ऋतु तथा ग्रीष्मकाल में होता है। ये रोग वेरीसेल्ला जोस्टर नाम के वायरस से होता हैं. इस दौरान व्यक्ति के शरीर में काले धब्बे पड़ जाते हैं और बुखार होता हैं साथ ही दर्द भी होता हैं . ये बीमारी एक इंसान से दूसरे इंसान को आसानी से फैल सकती हैं. ये रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति व बच्चों को हो सकता हैं.
चेचक के लक्षण
चेचक होने पर कुछ निम्न लक्षण रोगी में देखे जाते हैं :-
खुजली
जलन व दर्द
शरीर में लाल दाने
थकान
उल्टी आना
तेज बुखार
सिर में दर्द
बैचनी आदि लक्षण चेचक के रोगी में मिलते हैं.

चेचक के कारण
ये रोग वेरीसेल्ला जोस्टर नाम के वायरस से होता हैं.
चेचक एक रोगी व्यक्ति से दूसरे रोगी व्यक्ति को संक्रमित हो सकता हैं.
चेचक के रोगी के वस्तु का उपयोग करने के कारण जैसे रोगी व्यक्ति के कपड़ो का इस्तेमाल करना आदि
जानते हैं चेचक के लिए होम्योपैथिक उपचार
Variolinum 200 की ५ बुँदे, दिन में ३ बार , ५ दिन तक दें (५ साल से बड़े व्यक्ति को) यदि ५ साल से छोटा बच्चा है तो २ बुँदे, दिन में ३ बार, ( ५ दिन तक )
साथ में Bio-Combination 14 की 4 गोली सवेरे, ४ गोली दिन में और ४ गोली शाम को,
इन दवाओं को लेने पर आपको चेचक में लाभ मिलेगा, साथ ही ज्यादा परेशानी होने पर तुरंत किसी होम्योपैथिक डॉक्टर से परामर्श लें.

migrane

Migraine

माइग्रेन, एक ऐसी बीमारी जिसके मरीज दुनियाभर में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हमारे देश में भी इसकी तादाद बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ा कारण है भागदौड़ की जिंदगी। जो तनाव से तो भरपूर है पर उससे मुक्त होने के लिए हम कोई उपाय नहीं करते। बस यही सारी वजहें धीरे-धीरे माइग्रेन के रुप में बदलने लगती हैं।

माना जाता है कि जैसे ही आप सामान्य स्थिति से एकदम तनाव भरे माहौल में पहुंचते हैं तो सबसे पहले आपका सिर दर्द बढ़ता है। ब्लडप्रेशर हाई होने लगता है और लगातार ऐसी स्थितियां आपके सामने बनने लगे तो समझिए आप माइग्रेन के शिकार हो रहे हैं।

सिरदर्द से हर किसी का वास्ता है। ये एक ऐसा रोग है जिसके कई कारण हो सकते हैं। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे बेवजह सिरदर्द के शिकार हो गए हों। सिरदर्द का एक गंभीर रूप जो बार-बार या लगातार होता है, उसे माइग्रेन कहते हैं। माइग्रेन को आम बोलचाल की भाषा में अधकपारी भी कहते हैं।

माइग्रेन के लक्षण

माइग्रेन मूल रूप से तो न्यूरोलॉजिकल समस्या है। इसमें रह-रह कर सिर में एक तरफ बहुत ही चुभन भरा दर्द होता है। ये कुछ घंटों से लेकर तीन दिन तक बना रहता है। इसमें सिरदर्द के साथ-साथ गैस्टिक, जी मिचलाने, उल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

आम तौर पर इसका शिकार होने पर सिर के आधे हिस्से में दर्द रहता है। जबकि आधा दर्द से मुक्त होता है। जिस हिस्से में दर्द होता है, उसकी भयावह चुभन भरी पीड़ा से आदमी ऐसा त्रस्त होता है कि सिर क्या बाकी शरीर का होना भी भूल जाता है।

इसके अलावा फोटोफोबिया यानी रोशनी से परेशानी और फोनोफोबिया यानी शोर से मुश्किल भी आम बात है। माइग्रेन से परेशान एक तिहाई लोगों को इसकी जद में आने का एहसास पहले से ही हो जाता है। पर्याप्त नींद न लेना, भूखे पेट रहना और पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना जैसे कुछ छोटे-छोटे कारणों से भी आपको माइग्रेन की शिकायत हो सकती है।

माइग्रेन के कारण

माइग्रेन के कारण कई हो सकते हैं। एक तरफ तो कुछ स्थितियां हैं और दूसरी तरफ कुछ रोग भी होते हैं।

ज्यादातर लोगों को भावनात्मक वजहों से माइग्रेन की दिक्कत होती है। इसीलिए जिन लोगों को हाई या लो ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और तनाव जैसी समस्याएं होती हैं उनके माइग्रेन से ग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। कई बार तो केवल इन्हीं कारणों से माइग्रेन हो जाता है। इसके अलावा हैंगओवर, किसी तरह का संक्रमण और शरीर में विषैले तत्वों का जमाव भी इसकी वजह हो सकता है।

एलर्जी के कारण और अलग-अलग लोगों में एलर्जी के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। कुछ लोगों के लिए खाने-पीने की चीजें भी एलर्जी का कारण बन जाती हैं। कुछ लोगों को दूध और उससे बनी चीजें खाने से एलर्जी होती है तो कुछ के लिए साग-सब्जी एलर्जी का कारण हो सकती है। किसी को धूल से एलर्जी होती है तो किसी को धुएं से। इसलिए अगर आपको पता हो कि आपको किन चीजों से एलर्जी है तो उनसे बच कर रहें।

माइग्रेन के लिए होम्योपैथिक उपचार
Natrum Mur. 30 की ५ बुँदे, दिन में ३ बार ७ दिन तक लें
Spigelia 30 की ५ बुँदे , दिन में ३ बार इसे भी आप ७ दिन के लिए लें
Blooume 25 की 20 बुँदे दिन में ३ बार लें, इसे आपको आधे कप पानी में मिलते हुए लेना हैं,
साथ में Bio-Combination 12 की ४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, और ४ गोली शाम को लें.

इन दवाओं का बताई गयी मात्रा में सेवन कर आप माइग्रेन की समस्या से लाभ पा सकते हैं.

dengu

Dengue

डेंगू एक बीमारी हैं जो एडीज इजिप्टी मच्छरों के काटने से होती है। इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के उभरे चकत्तों से खून रिसता हैं। डेंगू बुखार धीरे-धीरे एक महामारी के रूप में फैल रहा है। यह ज्यादातर शहरी क्षेत्र में फैलता है। यदि डेंगू बुखार के लक्षण शुरूआत में पता चल जाएं तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। आइये जानते हैं डेंगू को किस तरह से पहचाना जा सकता है। डेंगू से बचने के लिये आपको मादा एडीज इजिप्टी मच्छर से बचना पडेगा, इसको पहचानने के लिये देखिये कि इनके शरीर पर चीते जैसी धारियां तो नहीं हैं। ये ज्यादातर शरीर पर घुटने के ऊपर हमला करते हैं।

लक्षण

ऎसे में ठंड लगती है और तेज बुखार होता है। शरीर पर लाल चकते भी बन जाते है जो सबसे पहले पैरों पे फिर छाती पर तथा कभी कभी सारे शरीर पर फैल जाते है।

पेट खराब हो जाना, उसमें दर्द होना, दस्त लगना, ब्लेडर की समस्या, लगातर चक्कर आना, भूख ना लगना। रक्त मे प्लेटलेटस की संख्या कम हो जाना और नब्ज का दबाव कम होना 20 मिमी एच जी दबाव से लगातार सिरदर्द, चक्कर आना, भूख ना लगना।

खूनी द्स्त लगना और खून की उल्टी आना जब डेंगूहैमरेज ज्वर होता है तो ज्वर बहुत तेज हो जाता है रक्तस्त्राव शुरू हो जाता है, रक्त की कमी हो जाती है, थ्रोम्बोसाटोपेनिया हो जाता है, कुछ मामलों में तो मृत्यु हो जाती है।

जानते हैं डेंगू के लिए कुछ होम्योपैथिक दवाइयां :
Eupatorium Per. की २ से ३ बुँदे, दिन में ३-६ बार लें
Carica papaya Q की १०-१५ बुँदे दिन में ३-६ बार लें
Ocimum San., १०-१५ बुँदे दिन में ३-६ बार
Cinchona Q की की १०-१५ बुँदे दिन में ३ बार लें
Dengumar टॉनिक की २.५ ml , दिन में ३ बार लें

इन दवाओं को लेने के साथ साथ आप गिलोई का सेवन करें और साथ ही अपने आस पास साफ़ सफाई बनाये रखे.

sleepness

Sleeplessness

यदि हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम अपने अच्छे खान-पान पर, व्यायाम परए काम पर ध्यान देते है उसी तरह हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमरा अच्छे से पूरी नींद लेना भी बहुत जरुरी है। हमारा यह कहना गलत नहीं होगा कि अच्छे भोजन का संबंध अच्छी नींद से है और अच्छी नींद का संबंध सुंदरता से। गहरी नींद आपको खूबसूरत बनाती हैं। नींद न आना एक बीमारी है। इससे प्रभावित व्यक्ति ठीक से सो नहीं पाता है। वह थोड़ी-सी आवाज या रोशनी से जग जाता है, जिसका उसकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

हमारी अच्छी सेहत के लिए हमारी नींद का पूरा होना जरुरी है। कुछ लोग नींद न आने के कारण नींद की गोलियों का सेवन करते है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है। अच्छी नींद लेने से शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर होती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए कम से कम 7.8 घंटे सोना जरुरी होता है। अच्छी नींद आने के बाद व्यक्ति तरोताजा महसूस करता है, साथ ही उसे नई स्फूर्ति का एहसास होता है।

नींद न आने के कारण

ऐसे कई कारण होते हैं जिससे हम अपनी पूरी नींद नहीं ले पाते है और इसी कारण सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।
नींद ना आने के कुछ सामान्य कारण है :
मानसिक तनाव व अधिक क्रोध,
चिंतन करना,
अधिक उत्तेजना,
कब्ज,
धूम्रपान व नशीले प्रदार्थ का सेवन
चाय-कॉफी का अत्यधिक सेवन,
आवश्यकता से कम या अधिक खाना या गरिष्ठ मसालेदार भोजन का सेवन करना।

नींद ना आने के लक्षण :

दिन में सुस्ती आना
थकान महसूस करना
नींद का बार बार टूट जाना
चिड़चिड़ापन आदि.

नींद न आने के लिए होम्योपैथिक उपचार

नींद न आने पर कुछ होम्योपैथिक दवाओं का सेवन कर आप अनिंद्रा में लाभ पा सकते हैं
Coffea Cruda 200 की २ बुँदे दिन में ३ बार लें, (२ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में , २ बुँदे शाम को )
Omeo Sleep Drop की २० बुँदे दिन में ३ बार लें (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में, २० बुँदे शाम को )
इन दवाओं को लेने के साथ ही खूब पानी का सेवन करें और पोषण युक्त आहार लें , साथ ही व्यायाम करें।

swineflu

Swine flu treatment

स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच1 एन1 के नाम से जाना जाता है और मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। 2009 में जो स्वाइन फ्लू हुआ था, उसके मुकाबले इस बार का स्वाइन फ्लू कम पावरफुल है, हालांकि उसके वायरस ने इस बार स्ट्रेन बदल लिया है यानी पिछली बार के वायरस से इस बार का वायरस अलग है। जब आप खांसते या छींकते हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो। नॉर्मल फ्लू से कैसे अलग सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के वायरस में एक फर्क होता है। स्वाइन फ्लू के वायरस में चिड़ियों, सूअरों और इंसानों में पाया जाने वाला जेनेटिक मटीरियल भी होता है। सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक जैसे ही होते हैं, लेकिन स्वाइन फ्लू में यह देखा जाता है कि जुकाम बहुत तेज होता है। नाक ज्यादा बहती है। पीसीआर टेस्ट के माध्यम से ही यह पता चलता है कि किसी को स्वाइन फ्लू है।

स्वाइन फ्लू के लक्षण
नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
मांसपेशियां में दर्द या अकड़न महसूस करना।
सिर में भयानक दर्द।
कफ और कोल्ड, लगातार खांसी आना।
उनींदे रहना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना।
बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
गले में खराश होना और इसका लगातार बढ़ते जाना।

स्वाइन फ्लू के लिए होम्योपैथिक उपचार
स्वाइन फ्लू होने पर होमियोपैथी की इन दवाओं का सेवन करें, साथ ही कही भी बाहर जाने पर फेस मास्क का प्रयोग करें और ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से बचे जिसे स्वाइन फ्लू हों, जानते हैं स्वाइन फ्लू के लिए होम्योपैथिक दवाएं :-

Arsenicum Album 200ch की ५ बुँदे, दिन में ३ बार लें (५ बुँदे सवेरे, ५ बुँदे दिन में , ५ बुँदे शाम को )
Swainil की २० बुँदे, दिन में ३ बार ( २० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में , २० बुँदे शाम को )

इन दवाओं के सेवन से आपको स्वाइन फ्लू में लाभ मिलेगा।