टोटल ल्यूकोसाइट टेस्ट की जानकारी
टीएलसी रक्त में लयूकोसाइटस की मात्रा का पता लगाने के लिए किये जाने वाला एक टेस्ट है. इस टेस्ट को डब्लूबीसी काउंट भी कहते है. क्योंकी लयूकोसाइट सफ़ेद रक्त कोशिकाओ के नाम से भी जानी जाती है.
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टीएलसी कम्पलीट ब्लड काउंट का भाग है. शरीर में सुजन, संक्रमण, और एलर्जिक प्रतिक्रियाओं को ठीक करने में डब्लूबीसी एक महतवपूर्ण भूमिका निभाते है.
स्वास्थ की जांच के लिए टीएलसी टेस्ट बहुत जरुरी होता है.
शरीर में संक्रमण, एलर्जी और अन्य रोगों का पता लगाने के लिए टीएलसी करवाया जाता है. इस टेस्ट के द्वारा खून में मौजूद वाइट ब्लड सेल्स को मापा जाता है.
हमारे शरीर के कई सारे भाग होते है. वाइट ब्लड सेल्स का निर्माण अस्थिमज्जा यानि बोनेमैरों में होता है. यहा से ये हमारे रक्त में पहुच जाते है और शरीर के बाहर से आने वाले वायरस और बैक्टीरिया की तलाश में लग जाते है. शरीर के किसी भी भाग में इन्फेक्शन हो रहा हो तो इन इन्फेक्शन से लड़ने के लिए वाइट ब्लड सेल्स तैयार रहते है. इसलिए इन सेल्स को इम्युनिटी सेल्स भी कहा जाता है. साथ ही किसी बीमारी से लड़ने के लिए ये शरीर ज्यादा वाइट ब्लड सेल्स का निर्माण करने लगता है.
टीएलसी टेस्ट करने को क्यों कहा जाता है?
जब कभी भी हमारे शरीर में संक्रमण छुपा हो, रक्त सम्बन्धी विकार हो, कोई एलर्जी हो, सुजन हो, रक्त का कैंसर आदि सम्भावन में ये टेस्ट करने की सलाह दी जाती है.
हलाकि वाइट ब्लड सेल्स के बढ़ने या कम होने पर कोई गंभीर लक्षण नही दिखाई देते.
हमारे खून में नार्मल टीएलसी की मात्रा ४००० से ११००० सेल्स के बीच होती है.
टीएलसी कम आने के या ज्यादा आने के अलग अलग कारण होते है. यदि वाइट ब्लड सेल्स ३७०० से कम हो तो इसे ल्युकोपेनिया कहा जाता है और ११००० से ज्यादा हो तो लयूकोसाइटोसीस का संकेत देते है.
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टीएलसी का लेवल ज्यादा हो तो लीवर में लोड पड़ने लगता है. टीएलसी लेवल का ज्यादा होना गंभीर नुकसान पंहुचा सकता है पर होमियोपैथी में इसके लिए कुशल उपचार उपलब्ध है तो आईये जाने डॉक्टर नवीन चन्द्र पाण्डेय जी द्वारा बढ़ते टीएलसी के लिए होम्योपैथिक उपचार.