Homeopathic Treatment for Worms
पेट के कीड़े
पेट में कीड़ें होने पर रोगी के पेट में दर्द होता है बेचैनी होती है, गुदा के आस-पास के भाग में खुजली होती है। अतिसार तो कभी कब्ज की समस्या बनी रहती है। शरीर का वजन धीरे-धीरे घटने लगता है। स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है तथा जी मिचलाता है। पाकाशय तथा आंतों में तीन प्रकार के कीड़ें होते हैं- छोटी-छोटी सूत की तरह के कीड़ें (स्माल थीड वोर्मस) गोल लम्बी केंचुए की तरह के कीड़ें (लोंग राउण्ड वोर्मस) खूब लम्बे फीते की तरह के कीड़ें (टेप वोर्मस) छोटी-छोटी सूत की तरह के कीड़ें :- ये कीड़ें कई सारे एक साथ जमा होकर मलद्वार के पास रहते हैं। इनकी लम्बाई एक चौथाई इंच से एक इंच होती है। ये कभी मूलनली या योनि के द्वार में भी चले जाते हैं जिसके कारण से इन स्थानों में खुजली होती है तथा जलन होती है और धातु निकलता है।
ये कीड़ें यदि किसी रोगी में हो तो उसमें इस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं-
नाक का अगला भाग या गुदाद्वार में खुजली होती है, सांस लेने और छोड़ने पर बदबू आती है, मलत्याग करने पर अधिक परेशानी होती है, गुदाद्वार में बराबर खुजली होती रहती है, नींद न आना, नींद में दांत कड़मड़ाना आदि।
गोल लम्बी केंचुए की तरह के कीड़ें :- ये कीड़ें छोटी आंत में रहते हैं, ये देखने में सफेद होते हैं तथा इनकी लम्बाई चार से 12 इंच तक होती है। ये कभी पाकस्थली की राह में मुंह में आकर उल्टी के साथ बाहर निकल आते हैं। ये कभी-कभी मलत्याग करने पर मल के साथ भी निकल आते हैं। ये कीड़ें यदि किसी रोगी के शरीर में हैं तो उसमें इस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ते हैं- पेट फूलना और पेट में बहुत दर्द, दांत कड़मड़ाना, नींद में एकाएक चीख पड़ना, नाक के अगले भाग और गुदा में खुजली होना, पेट कड़ा और गर्म महसूस होना, शरीर दुबला तथा पतला, चेहरा पीला, आंव-मिला मल होना, आंखों की पुतली फैलना, चेहरा पीला पड़ जाना, कभी बहुत भूख, कभी अरुचि, सांस से बदबू आना, बेहोशी छाना, जी मिचलाना तथा मुंह में बराबर पानी भर आना आदि।
खूब लम्बे फीते की तरह के कीडें :- ये सफेद, चिपटे, गांठ-गाठं दार होते हैं, इनकी लम्बाई 30 फीट से 200 फीट तक होता है, ये कीड़ें भी छोटी आंत में रहते हैं। ये मनुष्य के शरीर में एक से ज्यादा नहीं रहते हैं। मल के साथ इन कीड़ों का कुछ अंश टुकड़े-टुकड़े में होकर निकलता है।
हुक वर्म (अंकुश कृमि) :- ये कृमि बड़ी आंत में पाये जाते हैं और इनके कारण रोगी को एनीमिया हो जाया करता है, तलवों में खुजली के साथ उद्भद निकलना और चिड़चिड़ापन होना आदि।
टेप वर्म (फीता कृमि ) ये भी ज्यादातर आंतों में पाए जाते हैं और दस मीटर तक लम्बे होते हैं। इन कीड़ों के प्रकोप के कारण से कमजोरी थकावट, ज्वर और अंधापन होने के लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
एस्केरस (गोल कृमि) :- जब ये कीड़ें मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो रोगी की आवाज में सांय-सांय की ध्वनि आने लगती है। खांसी ज्वर, पाकाशय में दर्द होना तथा सांस लेने में दिक्कत आना आदि लक्षण इन कीड़ों के द्वारा हो जाते हैं।
थ्रेड वर्म (सूत कृमि) :- इन कृमि के कारण से गुदा में खुजली होती है, अधिकतर रात के समय में खुजली होती है, खांसी भी हो जाती है, सांस के साथ सांय-सांय की आवाज, अतिसार, मलद्वार में खुजली आदि लक्षण इनके द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं।
जियार्डिया :- इन कृमि के कारण से रोगी को दस्त लग जाते हैं, पेट फूल जाता है, चिकना और बदबूदार मल आना, शरीर का वजन घटना आदि।
पेट में कीड़े होने के कारण :-
दूषित पानी व भोजन का सेवन करने, अधपका मांस खाने तथा अस्वस्थ पालतू पशुओं के साथ खेलने या रहने से पेट तथा आंतों में कई प्रकार के कीड़ें हो जाते हैं।
पेट की सफाई ठीक प्रकार से न होने या पाचन सम्बंधी गड़बड़ियां होने से पेट में कीड़ें हो जाते हैं ।
कान या नाक से स्राव होने की वजह से उसमें मक्खी घुसकर अंडा दे देती है यही अंडे फूटकर नाक या कान में कीड़ा पैदा कर देते है।
कच्चे फल-मूल, ज्यादा पके केले, सड़ी मछली, अधिक मीठा खाना, गंदे पदार्थों का भोजन में प्रयोग करने के कारणों से पेट में कीड़ें हो जाते हैं।
पेट के कीड़े होने के लक्षण
खाने का न पच पाना
दस्त का होना
कब्ज़ की शिकायत
खाना खाने के तुरन्त बाद मल का आ जाना
मल में बलगम तथा खून आना
पेट में दर्द तथा जलन
वजन और भूख समस्या
मांसपेशियों और जोड़ों की शिकायत
गैस और सूजन का अनुभव
बवासीर
शारीरिक कमजोरी
त्वचा सम्बंधित रोग और एलर्जी
शरीर में खुजली, सूजन आदि लक्षण पेट के कीड़े होने में देखे गए हैं ।
पेट के कीडों का होम्योपैथिक उपचार
Cina 1m की 5 बुँदे 10-10 मिनट के अंतर से, ३ बार , इस दवा को सप्ताह में एक बार लें
Helmisol drops, की २० बुँदे दिन में ३ बार आधे कप पानी के साथ मिला कर लें
R 56, २० बुँदे दिन में ३ बार लें
इन दवाओं को सही मात्रा व समय पर लेने से आपको पेट के कीड़ों से छुटकारा मिलेगा, साथ ही खाने में संतुलित आहार लें, खूब पानी पिए।