Hairfall | जड़ते बालों पर होमियोपैथी का चमत्कार
बालों का जड़ना, बालों की कोई भी समस्या हो तो हम बड़े परेशान हो जाते है पर होमियोपैथी में इसके लिए बहुत अची दवाए और बालों के उत्पाद मौजूद है. आईये जाने क्या है बालों की समस्या के लिए बेस्ट उपचार
बालों का जड़ना, बालों की कोई भी समस्या हो तो हम बड़े परेशान हो जाते है पर होमियोपैथी में इसके लिए बहुत अची दवाए और बालों के उत्पाद मौजूद है. आईये जाने क्या है बालों की समस्या के लिए बेस्ट उपचार
पाचन क्रिया से सम्भंदित आजकल की आम बीमारी आई.बी.एस. का भी हमारे मस्तिष्क से ही सम्भंद है | ज्यादातर २० से लेकर ३० वर्ष के बीच के उम्र में होने वाली यह बीमारी एक साथ कई समस्याओ को पैदा करती है | जैसे पेट दर्द , एसिडिटी, कब्ज , किसी को न होना आदि | डॉक्टर इस बीमारी दवाओं से कुछ हद तक ही कंट्रोल कर पाते है ,पर रोग को जड़ से नही मिटा सकते | इसीलिए इसे लाइलाज बता देते है |
सच तो यह है की यदि आपको पाचन सम्भंदी बिमारियों से छुटकारा पाना है और अपने को स्वस्थ रखना है तो दवाओं का सहारा न लेकर अपने जीवन के अंदाज़ में परिवर्तन लाना होगा | अपने – आपको जानना होगा और ,अपना आत्मविश्लेषण करना होगा और अपनी जीवन शैली में वो समुचित बदलाव लाने होंगे , जिनके बारे में हमारे योग और आयुर्वेद के शास्त्रों में विस्तार से जानकारी दी गयी है | उनमे बताया गया है की बीमारियों से बचने की लिए शरीर की आंतरिक शक्तियों को संतुलित रखने के साथ साथ प्रक्रति के साथ उनके संतुलित को भी बनाये रखना जरूरी है | स्वस्थ रहने का यही सबसे अच्छा तरीका है | मगर वर्तमान में हम यह संतुलन भला कसे बना सकते है |
किसी इंसान का जीवन भी अनुवांशिक तत्वों ( Genetic Material ) से कंट्रोल होता है | वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन काल के बारे में कुछ कहने से पहले हमें उन तमाम घटनाओं पर गौर करना चाहिए ,जो मनुष्य के शरीर के अन्दर घटित होती है | उदहारण के तौर पर आमाशय के अन्दर निर्मित होने वाली उन कोशिकाओं को ही लीजिये, जो कुछ ऐसी भी कोशिकाये मौजूद रहती है ,जो मरते दम तक ही जीवित रहती है | उनके नष्ट होने और फिर से तैयार होने जैसी कोई प्रक्रिया उनमे नही होती |
होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।
होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्योपैथी चिकित्सा के जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन है। यह चिकित्सा के ‘समरूपता के सिंद्धात’ पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके।
होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक ;का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है।
होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं।
क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान (जन्म 1755-मृत्यु 1843 ईस्वी) छद्म-वैज्ञानिक होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता थे।
आप यूरोप के देश जर्मनी के निवासी थे। आपके पिता जी एक पोर्सिलीन पेन्टर थे और आपने अपना बचपन अभावों और बहुत गरीबी में बिताया था। एम0डी0 डिग्री प्राप्त एलोपैथी चिकित्सा विज्ञान के ज्ञाता थे। डॉ॰ हैनिमैन, एलोपैथी के चिकित्सक होनें के साथ साथ कई यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता थे। वे केमिस्ट्री और रसायन विज्ञान के निष्णात थे। जीवकोपार्जन के लिये चिकित्सा और रसायन विज्ञान का कार्य करनें के साथ साथ वे अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अनुवाद जर्मन और अन्य भाषाओं में करते थे।
एक बार जब अंगरेज डाक्टर कलेन की लिखी “कलेन्स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को
आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
कुछ समय बाद उन्होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्पन्न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया।
हैनिमेन की अति सूच्छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्सपीरियन्सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरूप कहा जा सकता है।