sleepness

Sleeplessness

यदि हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम अपने अच्छे खान-पान पर, व्यायाम परए काम पर ध्यान देते है उसी तरह हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमरा अच्छे से पूरी नींद लेना भी बहुत जरुरी है। हमारा यह कहना गलत नहीं होगा कि अच्छे भोजन का संबंध अच्छी नींद से है और अच्छी नींद का संबंध सुंदरता से। गहरी नींद आपको खूबसूरत बनाती हैं। नींद न आना एक बीमारी है। इससे प्रभावित व्यक्ति ठीक से सो नहीं पाता है। वह थोड़ी-सी आवाज या रोशनी से जग जाता है, जिसका उसकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

हमारी अच्छी सेहत के लिए हमारी नींद का पूरा होना जरुरी है। कुछ लोग नींद न आने के कारण नींद की गोलियों का सेवन करते है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है। अच्छी नींद लेने से शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर होती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए कम से कम 7.8 घंटे सोना जरुरी होता है। अच्छी नींद आने के बाद व्यक्ति तरोताजा महसूस करता है, साथ ही उसे नई स्फूर्ति का एहसास होता है।

नींद न आने के कारण

ऐसे कई कारण होते हैं जिससे हम अपनी पूरी नींद नहीं ले पाते है और इसी कारण सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।
नींद ना आने के कुछ सामान्य कारण है :
मानसिक तनाव व अधिक क्रोध,
चिंतन करना,
अधिक उत्तेजना,
कब्ज,
धूम्रपान व नशीले प्रदार्थ का सेवन
चाय-कॉफी का अत्यधिक सेवन,
आवश्यकता से कम या अधिक खाना या गरिष्ठ मसालेदार भोजन का सेवन करना।

नींद ना आने के लक्षण :

दिन में सुस्ती आना
थकान महसूस करना
नींद का बार बार टूट जाना
चिड़चिड़ापन आदि.

नींद न आने के लिए होम्योपैथिक उपचार

नींद न आने पर कुछ होम्योपैथिक दवाओं का सेवन कर आप अनिंद्रा में लाभ पा सकते हैं
Coffea Cruda 200 की २ बुँदे दिन में ३ बार लें, (२ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में , २ बुँदे शाम को )
Omeo Sleep Drop की २० बुँदे दिन में ३ बार लें (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में, २० बुँदे शाम को )
इन दवाओं को लेने के साथ ही खूब पानी का सेवन करें और पोषण युक्त आहार लें , साथ ही व्यायाम करें।

swineflu

Swine flu treatment

स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच1 एन1 के नाम से जाना जाता है और मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। 2009 में जो स्वाइन फ्लू हुआ था, उसके मुकाबले इस बार का स्वाइन फ्लू कम पावरफुल है, हालांकि उसके वायरस ने इस बार स्ट्रेन बदल लिया है यानी पिछली बार के वायरस से इस बार का वायरस अलग है। जब आप खांसते या छींकते हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो। नॉर्मल फ्लू से कैसे अलग सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के वायरस में एक फर्क होता है। स्वाइन फ्लू के वायरस में चिड़ियों, सूअरों और इंसानों में पाया जाने वाला जेनेटिक मटीरियल भी होता है। सामान्य फ्लू और स्वाइन फ्लू के लक्षण एक जैसे ही होते हैं, लेकिन स्वाइन फ्लू में यह देखा जाता है कि जुकाम बहुत तेज होता है। नाक ज्यादा बहती है। पीसीआर टेस्ट के माध्यम से ही यह पता चलता है कि किसी को स्वाइन फ्लू है।

स्वाइन फ्लू के लक्षण
नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
मांसपेशियां में दर्द या अकड़न महसूस करना।
सिर में भयानक दर्द।
कफ और कोल्ड, लगातार खांसी आना।
उनींदे रहना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना।
बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
गले में खराश होना और इसका लगातार बढ़ते जाना।

स्वाइन फ्लू के लिए होम्योपैथिक उपचार
स्वाइन फ्लू होने पर होमियोपैथी की इन दवाओं का सेवन करें, साथ ही कही भी बाहर जाने पर फेस मास्क का प्रयोग करें और ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से बचे जिसे स्वाइन फ्लू हों, जानते हैं स्वाइन फ्लू के लिए होम्योपैथिक दवाएं :-

Arsenicum Album 200ch की ५ बुँदे, दिन में ३ बार लें (५ बुँदे सवेरे, ५ बुँदे दिन में , ५ बुँदे शाम को )
Swainil की २० बुँदे, दिन में ३ बार ( २० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में , २० बुँदे शाम को )

इन दवाओं के सेवन से आपको स्वाइन फ्लू में लाभ मिलेगा।

dama

Allergy Bronchitis

आस्थमा जिसे दमा भी कहा जाता हैं, ये श्वसन तंत्र की बीमारी है जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि श्वसन मार्ग में सूजन आ जाने के कारण वह संकुचित हो जाती है। इस कारण छोटी-छोटी सांस लेनी पड़ती है, छाती मे कसाव जैसा महसूस होता है, सांस फूलने लगती है और बार-बार खांसी आती है। इस बीमारी के होने का विशेष उम्र बंधन नहीं होता है। किसी भी उम्र में कभी भी ये बीमारी हो सकती है। आम तौर पर अगर परिवार में आनुवांशिकता के तौर पर अस्थमा की बीमारी है तो इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। अस्थमा कभी भी ठीक नहीं हो सकता है लेकिन कई प्रकार के ट्रीटमेंट के द्वारा इसके लक्षणों को नियंत्रण में लाया जा सकता है या बेहतर रहने की कोशिश की जा सकती है। फेफड़ों में हवा के प्रवाह में रुकावट होने पर अस्थमा अटैक होता है।

अस्थमा के कारण –
अस्थमा के कई कारण है, जानते हैं कुछ सामान्य कारण :

अधिक दवाओं का सेवन
किसी गंभीर बीमारी के कारण
एलर्जी
वायु प्रदूषण
धूम्रपान और तंबाकू
श्वसन संक्रमण
जेनेटिक्स (आनुवांशिक)
मौसम के कारण
मोटापा
तनाव

अस्थमा (दमा) के लक्षण –

अस्थमा के कुछ सामान्य लक्षण निम्न हैं :-

खाँसी
घरघराहट
साँस लेने में तकलीफ
सीने में जकड़न या दर्द
लगातार सर्दी और खांसी
नींद में बेचैनी
थकान

अस्थमा के लिए कुछ होम्योपैथिक दवाएं :
Arsenicum Album 30ch की 2-2 बुँदे, दिन में 3 बार ( २ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में, २ बुँदे शाम को )
Blatta Orientalis Q की २० बुँदे, दिन में ३ बार आधे कप गुनगुने पानी के साथ (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में, २० बुँदे शाम को )
ADEL 10 की १५-२० बुँदे, दिन में ३ बार आधे कप गुनगुने पानी के साथ (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में, २० बुँदे शाम को )
साथ ही तली भुनी चीज़ो का सेवन न करें और ज्यादा मसालेदार खाना न खाये, भाँप लें और व्यायाम या योग करें ।

Sun Stokes

लू लगाना
गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ते ही लू लगने या हीटस्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में तापमान बढ़ना, शरीर में पानी की कमी होना, सिर भारी होना, आंखों में जलन, खून गर्म होना, बुखार, बेहोशी आदि समस्याएं हो सकती हैं। कई बार खून की गति का तेल होना एवं सांस की गति का बदलना एवं शरीर में ऐंठन होना काफी खतरनाक हो जाता है। इससे रोगी की जान भी जा सकती है। जब मनुष्य का शरीर अपनी क्षमता से अधिक गर्म हो जाता है तो इस अवस्था को लू लगना कहते हैं। लू लगने के कारण रोगी के शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है जिसके कारण उसके शरीर में कई प्रकार की अन्य बीमारियां भी हो जाती है। इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज किया जा सकता है।
लू लगने के लक्षण-
इस रोग के कारण व्यक्ति का शरीर गर्म तथा सुस्त हो जाता है। रोगी को ऐसा लगता है कि उसके शरीर में काम करने की ताकत नहीं रही हैं।
इस रोग के कारण रोगी की आंखे भी गर्म हो जाती हैं जिसके कारण उसकी आंखों से पानी निकलता रहता है।
शरीर में पानी की कमी हो जाती हैं
शरीर में कमजोरी व ऐठन
लू लगने के कारण-
यह रोग व्यक्ति को अधिक देर तक धूप में रहने के कारण तथा अधिक हवा के सम्पर्क में रहने के कारण
लू लगने का होम्योपैथिक उपचार
लू लगने पर Glonoinum 30 की २ बुँदे, दिन में ३ बार १०-१० मिनट के अंतर से लें
Natrum Muriaticum की २ बुँदे दिन में ३ बार लें, (२ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में, २ बुँदे शाम को )
Natrum Mur 6x, की ४ गोली दिन में ३ बार लें (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, ४ गोली शाम को)
इन दवाओं को लेने के साथ साथ खूब पानी पिए और धुप में न जाये।
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।

Prostate Enlargement

प्रोस्टेट पुरुषों में पाई जाने वाली एक ग्रंथि है, यह रोग पुरुषों में ही होता है क्योंकि पुरुष ग्रंथि स्त्रियों में नहीं होती है केवल पुरुषों में होती है। पुरुष में यह ग्रंथि मूत्राशय की ग्रीवा तथा मूत्रमार्ग के ऊपरी भाग को चारों तरफ से घेरकर रखती है। इस ग्रंथि के द्वारा सफेद, लिसलिसा तथा गाढ़ा स्राव निकलता है। जब पुरुष उत्तेजित होता है तो उस समय शुक्राणु प्रोस्टेट में पहुंच जाते हैं। यह लिसलिसा पदार्थ इन शुक्राणुओं को जीवित रखने और बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब यह ग्रंथि अधिक बढ़ जाती है तो मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग की क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है।

पुरुष ग्रंथि बढ़ने का लक्षण:-
इस रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में कई बार पेशाब करने के लिए उठना पड़ता है। रोगी को एक बार में पेशाब पूरा नहीं आता इसलिए उसे पेशाब बार-बार करने जाना पड़ता है।
जब पुरुषों की पुरुष ग्रंथि बढ़ जाती है तो उस रोगी के पेशाब की धार पतली हो जाती है तथा पेशाब कम और रुक-रुक कर आता है।
रोगी व्यक्ति का पेशाब बूंद-बूंद करके आने लगता है।इस रोग से पीड़ित रोगी पेशाब तथा शौच को रोकने में असमर्थ होता है।
रोगी को सिर में दर्द, घबराहट, थकान, चिड़चिड़ापन, लिंग का ढीला हो जाना तथा अधिक कमजोरी महसूस होना आदि परेशानियां होने लगती हैं।

पुरुष ग्रंथि के अधिक बढ़ने के कारण:-
गलत तरीके के खान-पान तथा दूषित भोजन व अधिक मसालेदार भोजन का सेवन करने से पुरुष ग्रंथि के अधिक बढ़ने का रोग हो जाता है।
मानसिक तनाव अधिक होने, अधिक चिंता करने तथा क्रोध करने के कारण पुरुष ग्रंथि का अधिक बढ़ने का रोग हो सकता है।
नशीले पदार्थों व शराब का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
पेट में कब्ज बनने के कारण भी पुरुष ग्रंथि बढ़ जाती है।मूत्र तथा शौच की गति को रोकने के कारण भी पुरुष ग्रंथि अधिक बढ़ सकती है।
लगातार लम्बे समय तक बैठने का कार्य करने से व्यक्ति के बस्ति प्रदेश पर बोझ पड़ता है जिसके कारण इस ग्रंथि में सूजन हो जाती है और यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने का होम्योपैथिक उपचार
इस रोग पर Conium Maculatum 30ch की दो ड्राम गोली बनवा लें ,इसकी ४ गोली दिन में ३ बार लें (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में , ४ गोली शाम को )
Sabal Pentarkan की २० बुँदे दिन में तीन बार (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में , २० बुँदे शाम को )आधे कप पानी में मिला कर लें.
dilution Eupatorium purp 30 को २ ड्राम बनवा लें और इसकी ४ गोली दिन में ३ बार लें , (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में , ४ गोली शाम को )
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।

Pyorrhea

पायरिया
दांतों का एक बहुत ही प्रचलित रोग है पायरिया। पायरिया दाँतों की एक गंभीर बीमारी होती है जो दाँतों के आसपास की मांसपेशियों को संक्रमित करके उन्हें हानि पहुँचाती है। यह बीमारी स्वास्थ्य से जुड़े अनेक कारणों से होती है, और सिर्फ दांतों से जुड़ी समस्याओं तक सीमित नहीं होतीं। यह बीमारी दाँतों और मसूड़ों पर निर्मित हो रहे जीवाणुओं के कारण होती है।दांतों की साफ सफाई में कमी होने से जो बीमारी सबसे जल्दी होती है वो है पायरिया। सांसों की बदबू, मसूड़ों में खून और दूसरी तरह की कई परेशानियां। जाड़े के मौसम में पायरिया की वजह से ठंडा पानी पीना मुहाल हो जाता है। पायरिया होने पर दांतों को सपोर्ट करने वाले जॉ बोन को नुकसान पहुंचता है। पायरिया का सही समय पर इलाज न किया जाये तो दांत ढीले होकर गिरने लगते हैं
पायरिया के कारण:
असल में मुंह में 700 किस्म के बैक्टीरिया होते हैं। इनकी संख्या करोड़ों में होती है। अगर समय पर मुंह, दांत और जीभ की साफ-सफाई नहीं की जाए तो ये बैक्टीरिया दांतों और मसूड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं और इस कारण पायरिया हो जाता हैं ।
गलत खान पान के कारण भी पायरिया होता हैं।
कब्ज के कारण।
लि‍वर की खराबी के कारण रक्त में अम्लता बढ़ जाती है।
पायरिया के लक्षण
नियमित आहार और दाँतों की रक्षा में रुक्षांस की कमी या पूर्ण रूप से अभाव,
दाँतों में खान पान के कण अटकना और दाँतों का सड़ना,
दाँतों पर अत्यधिक मैल जमना,
मुँह से दुर्गन्ध का निकलना और मुँह में अरुचिकर स्वाद का निर्माण होना,
जीवाणुओं का पसरण, मसूड़ों में जलन का एहसास होना और छालों का निर्माण होना, जरा सा छूने पर भी मसूड़ों से रक्तस्राव होना इत्यादि पायरिया के लक्षण होते हैं।
पायरिया का होम्योपैथिक उपचार
Pyrogenium 30, की ४ गोली दिन में ३ बार (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, ४ गोली शाम को)
Bio-Combination 18, की ४ गोली दिन में ३ बार (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में, ४ गोली शाम को)
Hekla Lava 3x, की २ गोली दिन में ३ बार (२ गोली सवेरे, २ गोली दिन में, २ गोली शाम को).
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।

Eczema

एक्जिमा (Eczema)
एक्जिमा रोग शरीर की त्वचा को प्रभावित करता है और यह एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। यह रोग स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे शरीर में हो सकता है। इस स्थिति में आपके शरीर के किसी भी अंग की त्वचा पर खुजली और लाल चकत्ते हो जाते हैं। शिशुओं में यह काफी प्रचलित है। एक्जिमा कुछ मामलों में संक्रामक हो सकता है। एक्जिमा को मूल रूप से तीव्र खुजली से जाना जाता है जिसमें कभी-कभी खून निकल आता है और त्वचा को क्षति होती है। कभी-कभी कुछ लोग एक्जिमा के इलाज में काफ़ी हद तक सक्षम होते हैं जबकि कुछ लोगों को उम्र भर इसी के साथ रहना पड़ता है।
एक्जिमा रोग होने के लक्षण
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर पर जलन तथा खुजली होने लगती है। रात के समय इस रोग का प्रकोप और भी अधिक हो जाता है।
एक्जिमा रोग से प्रभावित भाग में से कभी-कभी पानी अधिक बहने लगता है और त्वचा भी सख्त होकर फटने लगती है। कभी-कभी तो त्वचा पर फुंसियां तथा छोटे-छोटे अनेक दाने निकल आते हैं।
एक्जिमा रोग खुश्क होता है जिसके कारण शरीर की त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है और त्वचा पर खुजली अधिक तेज होने लगती है।
एक्जिमा रोग होने के कारण
एक्जिमा रोग अधिकतर गलत तरीके के खान-पान के कारण होता है। गलत खान-पान की वजह से शरीर में विजातीय द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।
कब्ज रहने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
दमा रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधियां प्रयोग करने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है। शरीर के अन्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाना, एलर्जी, निष्कासन के कारण त्वचा निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण एक्जिमा रोग हो जाता है।
जानते है एक्जिमा रोग के लिए होम्योपैथिक दवाएं :
एक्जिमा रोग होने पर R23 की 20 बुँदे दिन में ३ बार (२० बुँदे सवेरे, २० बुँदे दिन में, २० बुँदे शाम को )
इस दवा को समय पर लें और बतायी गयी मात्रा में लें, ज्यादा समस्या होने पर चिकित्सक से परामर्श लें, साथ ही खूब पानी पिए और पोषण युक्त आहार लें.
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।

Nose Bleeding

नकसीर फूटना रोग यदि साधारण हो तो अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन नकसीर फूटने का रोग बार-बार हो तो उसे रोकना कठिन होता है। नकसीर में खून हमेशा एक ही तरफ की नाक से न आकर स्वर नली या गलकोष या आमाशय से भी आता है। नाक से खून का स्राव नाक के एक या दोनों छिद्रों से हो सकता है। यदि खून नाक के एक छिद्र से निकल रहा हो तो इसका कारण स्थानिक हो सकता है लेकिन नाक के दोनों छेद से खून निकलता हो तो इसका कारण शरीर का अन्य रोग हो सकता है। नकसीर अधिकतर गर्मी के कारण फूटता है। बच्चों में यह रोग अधिक पाया जाता है।
नकसीर फूटने के कारण :-
नकसीर फूटने के कुछ सामान्य कारण है जिनमे से कुछ कारण निम्न हैं :
नाक या सिर में चोट लगने, नाक में कुछ घुस जाने, नाक खुरचने, नाक की हड्डी पर चोट लगने, मस्तिष्क में खून बढ़ जाने, जिगर का रोग, गर्मी के रोग, बहुत अधिक कार्य करने एवं खांसी आदि कारणों से नाक से खून बहने लगता है। किसी गंभीर बीमारी के कारण , दवाइयों का सेवन करने के कारण, कभी-कभी मासिकधर्म बंद होने के कारण मासिकस्राव के स्थान पर नाक से खून आता है। बवासीर के मस्से से खून आना बंद होकर नाक के रास्ते से खून निकलने लगता है। सर्दी का स्राव रुक जाने के कारण भी नाक से खून निकलने लगता है। कभी-कभी यह रोग सर्दी लगने, सनुसाइटिस रोग, नाक में फोड़ा होने, डिप्थीरिया रोग होने, नाक के बीच की दीवार में खराबी आने तथा फोड़ा होना आदि कारणों से भी नाक से खून निकलने लगता है।
नाक से खून संक्रमित बुखार के कारण से आ सकता है जैसे- फ्ल्यू, खसरा, डेंगू, सांस का रोग, टायफाइड, मलेरिया, उच्च रक्तचाप, कैंसर, धमनी या शिरागत ब्रोंकाइटिस आदि।
शरीर में विटामिन- ´सी´, ´बी´-12, फ्लोरिक ऐसिड एवं विटामिन- ´के´ की कमी के कारण नाक से खून का स्राव होता है।
गरम या सूखे वातावरण के कारण
नकसीर फूटने के लक्षण :-
नाक से खून आना,
नाक से होकर गले में खून आने से खून मिला हुआ बलगम आना।
गले में फंसे बलगम के साथ खून आना या नाक का बंद होना आदि इस रोग के लक्षण होते हैं।
सांस लेने में परेशानी
दिल की धड़कन का असामन्य होना
जानते है नकसीर फूटने पर कुछ होम्योपैथिक दवाएं :
Calcarea Carb 200 की ३-४ खुराक एक बार लें ,
Ammonium Carbonicum 6ch की २ बुँदे , दिन में ३ बार (२ बुँदे सवेरे, २ बुँदे दिन में, २ बुँदे शाम को )
इन दवाओं को लेने के साथ साथ नाख को खरोंचे नहीं और खून न रुकने पर जल्द ही डॉक्टर से परामर्श लें.
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।

Dandruff

रूसी
किसी भी व्यक्ति के सिर में जब सफेद रंग की सूखी पपड़ी सी जम जाती है तो उसे रूसी कहा जाता है, ये मृत त्वचा के कण होते है| जिसकी परते नई त्वचा आने पर कणों में विभाजित हो जाती है| रूसी एक हानी रहित पुरानी समस्या है| जो तब होती है जब सिर शुष्क या चिकना होता है| बालों में या उपरी हिस्से और कंधों पर दिखाईं देते है| किसी भी व्यक्ति के सिर में जब सफेद रंग की सूखी पपड़ी सी जम जाती है तो उसे रूसी कहा जाता है। रुसी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती हैं और कभी भी हो सकती हैं, रूसी होने से वैसे तो व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कोई असर नही पड़ता लेकिन फिर भी अगर सिर में ज्यादा रूसी हो जाती है तो कहीं शादी-पार्टी आदि में जाने पर रूसी बालों में बहुत ज्यादा चमकती है और व्यक्ति का सिर सफेद-सफेद सा लगता है जिससे व्यक्ति को अपना अपमान सा महसूस होता है इतना ही नहीं रुसी होने पर सिर में खुजली होने लगती है जो पब्लिक जगहों पर शर्मिंदगी का कारण बनती हैं ।
कारण-
सिर में रूसी पैदा होने का कारण अक्सर पुराने लोगों में चली आ रही रूसी भी होती है, जो की अनुवांशिक कारण कहा जा सकता हैं, जैसे बच्चे से पहले उसके दादा-दादी के सिर में, मम्मी-पापा के सिर में रूसी होती है तो रूसी बच्चे के सिर में भी हो जाती है।
सिर की त्वचा में संक्रमण के कारण।
यदि किसी के सिर में Dandruff है और आप उसकी कंघी, तोलिया प्रयोग करेगे तो आप को भी हो सकता है|
इसके अलावा सिर में ज्यादा पसीना आने से, ज्यादा मानसिक या शारीरिक मेहनत करने से, गलत साबुनों से सिर को धोने से, सिर में त्वचा का रोग हो जाने से, खोपड़ी में सोरायसिस हो जाने के कारण भी रूसी पैदा हो जाती है।
सिर की सफाई न करना भी एक मुख्य कारण है रुसी का इसके साथ ही गलत तरीके के खान पान और दूषित भोजन के कारण भी रुसी होती है.
रुसी के लक्षण-
सिर में सफेद-सफेद सी पपड़ी का जम जाना, सिर में बहुत तेज खुजली होना, आदि सिर में रूसी पैदा होने के लक्षण होते हैं.
रुसी के लिए होम्योपैथिक उपचार
डैंड्रफ या रुसी के लिए सबसे पहली दवा Natrum Mur 200 की ४ खुराक , 10-10 मिनट के अंतर से ले, ये आपको सिर्फ एक दिन के लिए ही लेनी हैं, अगले दिन से Causticum Q, 15 बुँदे दिन में २ बार , १५ बुँदे सवेरे, १५ बुँदे शाम को। इसके साथ ही Kali Sulp 6x, ४ गोली दिन में ३ बार (४ गोली सवेरे, ४ गोली दिन में , ४ गोली शाम को ).
रुसी होने पर होमियोपैथी की इन दवाओं का सेवन करें साथ ही बालों को साफ रखे और किसी अन्य व्यक्ति का कंघा या टॉवल न उपयोग करें।

Air Sickness

Air sickness

एयर सिकनेस यानि की हवाई सफर के दौरान जी मचलना या मतली आना दोस्तों घूमना फिरना तो सभी को बहुत अच्छा लगता है। परंतु किसी किसी को सफर करने के नाम से ही डर लगने लगता है। विशेषकर जो भी लम्बा सफर हो क्योकि उन्हें ट्रेवलिंग के समय उल्टियां होती है या जी घबराता है। किसी किसी को चक्कर आते हैं या सिरदर्द हो जाता है। सफर के दौरान चक्कर आने को मोशन सिकनेस, एयर सिकनेस या फर ट्रेवल सिकनेस के नाम से भी जाना जाता हैं.
इससे घूमने फिरने का मजा किरकिरा हो जाता है। और पेट घूमने लगता है , बच्चो में, महिलाओ में और बूढ़े लोगो में औरों की तुलना में ज्यादा समस्या दिखाई देती हैं.
एयर सिकनेस के कारण
एयर सिकनेस का वैसे तो कोई विशेष कारण नहीं है, कई लोगो को कमजोरी के कारण मोशन सिकनेस का सामना करना पड़ता हैं.
कुछ लोगों में यात्रा को लेकर डर और चिंतन देखने को मिलता है अक्सर ऐसे लोग भी मोशन सिकनेस से ग्रस्त होते है
खाली पेट यात्रा करने के कारण भी मोशन सिकनेस हो सकती हैं
यात्रा के दौरान दम घुटने के कारण
पेट ख़राब या खाना नहीं पचने के कारण
यात्रा के दौरान जरूरत से ज्यादा खाने के कारण
एयर सिकनेस के लक्षण
एयर सिकनेस के कुछ निम्न लक्षण दिखाई देते है :
मतली, उलटी या जी मचलाना
शरीर में कमजोरी सी महसूस होना, थकान
पेट में गड़बड़ या पेट घूमना
सिरदर्द, सिर घूमना
सांस लेने में मुश्किल होना , सांस फूलना
चक्कर और नींद आना
ये कुछ सामन्य लक्षण है जो एयर सिकनेस में दिखाई देते हैं.
एयर सिकनेस का होम्योपैथिक उपचार:-
यात्रा के दौरान Cocculus Indicus 30 की २-२ बुँदे जल्दी जल्दी लेंगे,आप चाहे तो इसे आधे ड्राम की गोलियां बनवा लें और २ -२ गोली जल्दी जल्दी लें.
एयर सिकनेस होने पर आप इस होम्योपैथिक दवाओं का सेवन करें साथ ही जब भी आप यात्रा करने वाले हों उससे कुछ पहले से ही ये दवाये आप शुरू कर सकते है, इसके साथ ही यात्रा में घबराये नहीं , यात्रा से पहले ज्यादे मसालेदार खाने से परहेज करें।
ध्यान दे – दवाओं का सेवन बताई गयी विधि और मात्रा में ही करें, आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं तो दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपने निकटतम विश्वसनीय होमोपथिक विशेषज्ञ से जरुर परामर्श कर लें।